Ullas

Ullas

Thursday, April 19, 2012

Few poems


दिल कि गलि
दिल कि गलियों में हम ढूंडा करते है
तेरी ज़ुल्फं कि छायों  में सब खोने लगते है
कभी ये मिला तो कभी वो मिला खुश हुए सारे
तेरे आँखों के आगे सब खाली लगते है

दिल कि एक  गलियन कि मोड़ पे
मिलने का वादा जो था
तुमहारे आते आते हम गलियन भूलने लगते है

कि मानो एक धुंध सी छा गयी है
गलियों को शाम ने ओड़ रखी है
तुम्हे आना उसी गलियन के मोड़ पे
जहाँ शाम भी पता भूलने लगती है

अलविदा
जब आये थे तुम, ये अलग ही थे हम
नदियों और चांदनी में डूबा करते थे

जब गए थे तुम , ये अलग ही थे हम
तुम्हारे आँखों और होठों में खोया करते थे

जब अलविदा किये  तुम, ये अलग ही थे हम
तुम्हारे बदन कि खुशबू को ढूंडा करते थे

जब आये थे तुम, ये अलग ही थे हम
माझी  के गानों में खो जाते थे

जब गए थे तुम , ये अलग ही थे हम
तुम्हारे जुल्फों  कि छाओं में कुछ देर बैठ लेते थे

जब अलविदा किये  तुम, ये अलग ही थे हम
तुम्हारी आवाज़ को दीवारों से सुना करते थे

আকাশ
কথা ছিল বন্ধু তোমার হাথে রাখব আকাশ
উড়িয়ে দেব মনের মত ধরে রাখা পাখি
পাখির রঙ্গে আকাশ ভরে নতুন আলো উঠবে জলে
তোমার হাথে হবে আমার রঙিন ভুবন

সেই না ভেবে তোমার কাছে এসছি ছুটে কত জোরে
পারবে তুমি এই বিকেলে আমার আকাশ নিতে?

নাকি বৃষ্টি ভিজে নোংরা জলে পাতায় পাতায় পড়ব ঝরে
তোমার আকাশ আমার আকাশ মিলবে না হয় অন্য জলে ....



সুন্দর
আমার বাধা আমি জানি, রয়ছে একটা বড় ধাঁধা
কে যে  বাধা আমাকে দেয় বুঝে না পাই

লাগত ভালো আকাশ পাখি, নদী নালা পাহাড় সারি
সবই কেমন গুলিয়ে গেল ওই traffic এর ধোয়ায়ে  

কেন যেন সুন্দর আর লাগে না ভালো
সবিই যেন কোথাও  একটা ভুল মেশানো

ওই যে দেখো ওই ওপারে কমলা রঙ্গে ফুল ফুটেছে
কেউ  যেন ওকে ঘুস দিয়েছে তাই তো সে যে খুব সেজেছে

জলের ওপর ওই যে দেখো চাঁদের আলো ঢেউ তুললো
ওসব যেন duty চাঁদের, এটা  করে তার জীবিকা চলে

আবার দেখো ওই যে ধোয়া ভরে দিল আকাশটা
গাড়ির আওয়াজে  প্রান আর মনটা ভাবিয়ে তুললো আবার

এখন সুন্দর খুজবে কোথায়, রাস্তার ধারে যে নোংরা কুরয়ে ?
সেও যে  এখন আকাশে  পাখি দেখে না

আর তোমার কাছে সময় কখন mobile ছেড়ে দেখবে পাখি
তুমি না হয় tv দেখো আকাশের রং দেখলে  সময় নষ্ট হয়

আবার আমি আমাকে দেখি, ছবি আঁকবি? প্রশ্ন করি
রং তুলি নিয়ে ছবি আঁকা যাবে না

আমার সময় আমি বাছি, ভিড়  করে ওই বাসেই চাপি
সুন্দর বলে  কিছু আছে, নাকি ওসব ছিল কল্পনা



Come lets Ullas

Ullas - is the word for cheers...


In a time when we don't even know who stays in our neighborhood but have 97 friends in the orkut the cheer is missing.
The time is missing when you were really in physical company of many people who can really cheer with you.
Now people are just stressed out if they don't receive a scrap on his/her new posted pics.
Really what a time we are living in...

This blog is my personal experiences with finding new people and friends not on orkut and yahoo but on the journey called life.....